दिल्ली, 27 अगस्त: आज से
लगभग 8 साल पहले दिल्ली ने कांग्रेस सरकार के भ्रष्ट शासन को नकारते हुए
अपना भरोसा तेज़ी से उभरते साफ़ छवि वाले इमानदारी का दिखावा करने वाले अरविन्द
केजरीवाल की पार्टी को दिल्ली में उनकी सरकार बनवा कर जताया. लेकिन अब रोज़ नए
घोटालों के उजागर होने से दिल्ली निवासी अपने को ठगा सा महसूस करने पर विवश हो गए
है.
बात चाहे विश्व आपदा कोविड-19 से सम्बंधित ऑक्सीजन/दवाई/हस्पताल घोटाले की हो जिसकी वजह से कई दिल्ली वासियों को अपनी जन गवानी पड़ी चाहे बात बच्चों के भविष्य से जुडी शिक्षा नीति और सरकारी स्कूलों की बदहाली की हो या हाल ही में चल रही आबकारी नीति की हो जिस में दिल्ली के हर नौजवान को शराबी बना कर परिवारों को तोड़ने की साजिश की हो, दिल्ली की अरविन्द केजरीवाल सरकार हर मोर्चे पर अपनी विफलता के झंडे गाढ कर एक नाकाम नेतृत्व साबित हुई है.
इस ही श्रृंखला में एक नया घोटाला
सामने आया है जिसमे कथित रूप से सूबे की केजरीवाल सरकार के मंत्रियों के शामिल
होने की बातें कही जा रही हैं. हालिया मामला दिल्ली के शकर पुर स्कूल ब्लाक की 4
बीघा सरकारी ज़मीन का है जिसकी कीमत लगभग करोड़ों रूपया बताई जा रही है.
मामला कुछ इस प्रकार है कि शकरपुर स्कूल ब्लाक इलाके में एक 4
बीघा ज़मीन का टुकड़ा है जिसका मालिकाना अधिकार पुश्तैनी रूप से 1965 तक
“भोंदू” के पास था जिसमे से भोंदू ने तीन बीघा ज़मीन 27/01/1965 को
शकरपुर निवासी रामचंद्र पुत्र संग्राम नामक
व्यक्ति को दो हिस्सों में बेच दी. समय बीतने पर दिल्ली सरकार की शेहरी विकास नीति
के चलते इस 4 बीघा ज़मीन का अधिग्रहण दिल्ली सरकार के राजस्व
विभाग ने करकर ज़मीन का कब्ज़ा DDA को सौंप दिया.
DDA द्वारा इस ज़मीन
का कब्ज़ा लेने के उपरांत भूमाफियों की लालची नजर इस सरकारी ज़मीन पर पढ़ गई. वर्ष 1980
में कुछ भूमाफियों ने इस कीमती ज़मीन को हड़पने की नियत से झूठे कागज़ात बनाकर कब्जा
करने की कार्यवाही शुरू की जिसका विरोध समय-समय पर दिल्ली नगर निगम व क्षेत्रीय
नागरिकों ने किया और कमूनी कार्यवाही करते हुए न्यायालय का दरवाज़ा खटखटाया जिसमे मुकदमा संख्या
106/31.01.1985 दायर किया जिसमे कार्यवाही करते हुए माननीय न्यायाधीश श्रीमान ‘नरेन्द्र कुमार’ ने दिनक 3
मार्च २००३ को दिए अपने आदेश में भूमाफियों के कागज़ात को नकली(फर्जी) घोषित करते
हुए उन पर रूपया तीन हज़ार (रू.3000/=) का आर्थिक दंड भी लगाया.
उक्त आदेश के विरुद्ध भू-माफियाओं ने अतिरिक्त
जिला न्यायाधीश श्रीमान ए.
के. पाठक की अदालत में एक सिविल आपील संख्या 35/2003 दाखिल की जिसमे
माननीय अतरिक्त जिला न्यायाधीश महोदय ने
दिनक 07/08/2004 को निचली अदालत के फैसले को सही ठहराते हुए
भूमाफियों के लिए “अतिक्रमणकारी” शब्द का प्रयोग
करते हुए अपील को रद्द कर दिया.
जिसके विरुद्ध भूमाफियों ने माननीय
दिल्ली उच्य न्यायालय में द्वितय अपील संख्या 225/2004 फाइल की जिसपे
दिल्ली उच्य न्यायालय के माननीय विद्वान् न्यायाधीश श्रीमान ‘आर.एस. सोढी’ ने दिनक 06/12/2005 को
निचली अदालत के आदेश को सही मानते हुए भूमाफियों की अपील को रद्द कर दिया.
जिसके विरुद्ध भूमाफियों ने माननीय
सर्वोच्य न्यायालय में ‘विशेष अनुमति याचिका’(एसएलपी)
दायर की जिसे ने माननीय सर्वोच्य न्यायालय ने ख़ारिज करते हुए भूमाफियों को किसी
प्रकार की राहत प्रदान करने से इनकार कर दिया.
तथाकथित “इमानदार सरकार”
आने
के उपरांत न जाने किस दबाव में दिनांक 01/09/2016 को माननीय
दिल्ली उच्य न्यायालय द्वारा घोषित अतिक्रमणकारी श्याम मिश्रा के नाम इस सरकारी
ज़मीन में से 470 गज़ की रजिस्ट्री कर दी गई जिसका बाज़ार मूल्य लगभग रुपये पच्चीस
करोड़ बताया जा रहा है.
जिसके विरोध में स्थानीय निवासी ‘किरनपाल
सिंह त्यागी’ (अध्यक्ष, अन्याय विरोधी मोर्चा(पंजी.)) ने माननीय दिल्ली
उच्य नियायाल्य में इन भूमाफियों के खिलाफ आवाज़ उठाई तो माननीय दिल्ली उच्य न्यायालय
याचिका संख्या 11171/2021 का निबटारा करते हुए सम्बंधित
प्राधिकरणों को इस धोखाधड़ी व सार्वजनिक संपत्ति की लूट-मार पर गंभीरता से विचार
करने के निर्देश जारी किये.
जिसके उपरांत दिनांक 26/07/2022
को
सम्बंधित अधिकारीयों/प्राधिकरणों को निवेदन करने के बावजूद किसी भी अधिकारी के कान
पर जूँ तक नहीं रेंगी और सम्बंधित अधिकारी कानो में तेल डालकर मज़े से सो रहे हैं
और भूमाफिया सरकारी ज़मीन पर माननीय सर्वोच्य न्यायालय के आदेश के बावजूद काबिज़ हैं
और सरकारी ज़मीन की रजिस्ट्री करने वाले अधिकारी बिना किसी डर के एक नए घोटाले को
अंजाम देने के लिए स्वतंत्र रूप से घूम रहे हैं और अपने नापाक इरादों को अंजाम दे
रहे हैं. स्थानीय लोगों का कहना है की किसी भी अधिकारी का इस विषय में हाथ न डालना
सरकार के मंत्रियों की मिलीभगत की ओर इशारा करता है.